रहस्य खोल दिया
रत्ना का विवाह रायपुर गाँव के भरे पूरे परिवार से हुआ था उसका पति सुजान एक शिक्षक था ।
पहले शिक्षक बनने के लिए ज्यादा पढ़ना जरूरी नही होता था कुछ ही क्लास पढ़ लेने पर आसानी से नौकरी मिल जाया करती थी ।
उन दिनों में आठवीं पास किए हुए व्यक्ति को मिडिल क्लास की उपाधि प्राप्त होती थी ;और उसे बहुत ही सम्मानित नजरों से देखा जाता था; इसी प्रकार सुजान ने भी मिडिल पास कर लिया था और वह शिक्षित बन गया था।
घर भरा पूरा और संपन्न था किसी भी चीज की कोई कमी न थी रत्ना के पिता जो जैसलमेर जैसे शहर में रहते थे उन्होंने अपनी इकलौती बेटी रत्ना का विवाह सुजान सिंह से कर दिया यह सोच कर कि सुजान की तबादला भी कुछ दिन बाद वह जैसलमेर में ही करा लेंगे नेताओं से उनकी अच्छी पहचान थी वह खुद भी एक अच्छी पुलिस पोस्ट पर कार्यरत थे।
रत्ना ने भी मना नहीं किया उसे भी बड़ी रोचकता थी गांव में विवाह करने की क्योंकि उसमें जन्म से लेकर आज तक वह 18 साल की हो गई पर कभी भी गांव को नहीं देखा था ।
अधिक पढ़ाई तो उसने भी नहीं की थी पर हां पांचवीं तक पढ़ाई वह भी कर चुकी थी उसने बहुत जिद की अपने पिता से कि मैं नौकरी करना चाहती हूं पर पिता ने मना कर दिया क्योंकि वह दौर ऐसा था जब इंसान बेटी बहू से नौकरी कराना पाप का विषय माना जाता था। और रत्ना चुप हो गयी।
उसका विवाह सुजान से हो गया रत्ना देखने में बहुत ही खूबसूरत थी सारे गांव में उसके सौंदर्य के चर्चे थे।
सुंदरता के साथ-साथ वह सारे कार्यों में निपुण थी ।
सुजान सिंह ने पहली ही रात रत्ना को समझा दिया था देखो रत्ना तुम्हें गांव में ही मेरे साथ रहना होगा मैं अपने माता पिता को छोड़कर शहर में नहीं जाऊंगा ऐसा नहीं कि मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूं मेरे और भी भाई हैं पर मेरा भी कुछ दायित्व बनता है उनके प्रति और मुझे अपने पुश्तैनी गांव से बहुत लगाव है।
रत्ना में भी उसकी हां में हां मिला दी और कहा मैं कभी आपसे यह नहीं कहूंगी कि आप अपना गांव छोड़कर शहर में बस जाओ,- इसी तरह दोनों ने सहमति से अपने जीवन की गाड़ी प्यार समर्पण के साथ आगे बढ़ा रहे थे शादी को 2 साल हो गए और रत्ना को कोई भी बच्चा नहीं था यह देखकर गांव वाले बुजुर्ग महिलाएं मुंह चढ़ाते हैं उसके सास से कहती अरे इसे कहीं दिखाओ ऐसा ना हो सुजान का नाम ही ना चलेगा उसकी सास भी घर आकर कहती तो रत्ना को यह सब बहुत बुरा लगता ।
फिर एक रात उसने सुजान से कहा कि आप मुझे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा दो जिससे कि मैं भी मां बन सकूं सुजान सिंह जोर से हंसा अरे बावली यह दुनिया की बातों में क्यों आ जाती है तू अभी तेरी उम्र ही क्या है इसीलिए मैंने थोड़ी एहतियात बरती अब तुम पूरे 20 साल की हो गई हो तो बच्चा भी हो जाएगा पहले किसी रिश्ते को समझना ज्यादा जरूरी होता है ;और तुम भी शरीर से अब पूर्णता स्वस्थ हो और मां बनने के लिए तैयार हो;
फिर अगले माह रत्ना गर्भवती हो गयी ,यह बात अपनी सास को बताई तो वह फूले नहीं समा रहे थे सबसे कह रही थी मेरी बहू और लड़के पढ़े लिखे हैं तभी तो अक्ल से काम लिया उन्होंने, वो कोई भेड़ बकरी थोड़ी है मेरी बहू जो कुछ न समझे और चली जाए बच्चे जनती और अपने शरीर को बिगाड़ ले।
जब रत्ना के पिता को यह पता चला कि रत्ना के गर्भ में दो बच्चे हैं तो उन्होंने सूजान सिंह को कह दिया 9 महीना लगते ही अपने पास जैसलमेर बुला लेंगे।
सास ने बहुत आनाकानी की पर सुजान के आगे कुछ ना चली सभी गांव की औरतें मुंह पर ताने मार रहीं थी।
बहुत नाजुक है तुम्हारी बहू आज तक इस गांव की कोई भी जनानी बच्चा पैदा करने गाँव से बाहर ना गई तुम्हारी बहू जा रही है शहर में।
पर सुजान सिंह ने किसी की एक न मानी और नवा महीना लगते ही उसे उसके पिता के घर छोड़ आया ।
15 दिन बाद रत्ना को तेज प्रसव पीड़ा हुई उसके पिता ने उसे अच्छे डॉक्टर ने के यहां एडमिट किया और उसने दो स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया एक बेटा और एक बेटी यह देखकर सभी फूले ना समा रहे थे कि जच्चा और बच्चा दोनों ही स्वस्थ थे सुजान तो बहुत खुश था अपने बेटी और बेटे को देखकर और सबसे बड़ी प्रसन्नता उसे थी स्वस्थ बच्चों के साथ-साथ मां भी पूर्णता स्वस्थ है।
सुजान की मां भी शहर उन्हें देखने आयीऔर बहुत प्रसन्न हुई सारी बातें भूल गयीं और पूरे गांव में लड्डू को बटवाया मेरी बहू ने दो बच्चों को स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया है और मेरी बहू भी पूर्णता स्वस्थ है ।
सुजान सिंह से उसकी माँ ने कहा 10 दिन हो गए अब तो बहू को घर बुला लाओ ;
तभी सुजान सिंह ने समझाया मां अभी डॉक्टर ने 15 दिन और रखने को कहा है तो गांव में वह सब नहीं हो पाएगा इसीलिए थोड़ा इंतजार करो सुजान सिंह के आगे एक चल ही नहीं है यह सोचकर सुजान की मां चुप हो गई और सुजान की भावी ताने मारने लगी पर सुजान पर उनकी बातों का कोई फर्क नहीं था 20 दिन बाद जब सुजान रत्ना को लेकर गांव में आया तो बहुत जोरदार स्वागत किया गया ।
खूब अच्छे से सारे कार्य किए गए बहुत धूमधाम से ;
सुजान सिंह जी बहुत खुश था आज रत्ना दोनों बच्चों को गोद में लिए हुए मां गौरी की तरह लग रही थी।
सभी कार्य निपट गए शाम को जब सब खाना पीना समाप्त हो गया सब मेहमान अपने अपने घर चले गए सुजान रत्ना के पास आया और बोला आज मैं तुझसे बहुत खुश हूं तुम मुझसे कुछ भी मांग लो।
ठीक अभी नही समय आने पर मांग लुंगी रत्ना ने कहा ठीक है याद रखना मर्द हो अपनी जुबान से बदल न जाना।
हां हां ठीक है तूने मुझे पिता बनाने का सौभाग्य दिया है वह भी एक साथ दो-दो स्वस्थ बच्चों का याद रखूंगा और कभी अपनी जुबान से न बदलूंगा और दोनों सुख से जीवन बिताने लगे ।
सुजान ने बड़े प्यार से बेटी का नाम विशाखा और बेटे का नाम विराज रखा , घर पर सुजान की माँ उन्हें मुन्ना, मुन्नी कहकर पुकारते और कहते क्या अंग्रेजी नाम रखा तूने यह हमें तो कहने न आते हमे तो मुन्ना मुन्नी ही कहेंगे।
सुजान हंसकर कह दिया ठीक है मां जो तुम्हें अच्छा लगे वही बोलो तुम और वैसे भी तुम्हारे भी तो पोते पोती है ना तुम्हारा भी पूरा अधिकार है अपने मन के नाम से इन्हें बुलाने का।
धीरे धीरे बच्चे बड़े होने लगे पर घर में सभी मुन्ना को अधिक स्नेह करते मुन्नी के लिए इतना स्नेह नहीं मिलता पर रत्ना और सुजान सिंह दोनों अपने बच्चों को बराबर ही स्नेह देते थे रत्ना को यह बात बुरी भी लगती और वह अक्सर सुजान से कहती थी पर सुजान उसे समझा देता कि क्यों बावली हुई है जमाने से क्या लेना देना हम तो अपने बच्चों में भेदभाव नहीं कर रहे ना तू किसी की बातों में अपना दिमाग खराब मत किया कर।
रत्ना बोली ठीक है यह भी सही है मां-बाप को भी भेदभाव नहीं करना चाहिए क्योंकि बच्चों को जीवन को आगे ले जाने में सबसे बड़ा उत्तरदायित्व मां-बाप के का ही होता है और हम सारे उत्तरदायित्व पूरे करेंगे ।
अब मुन्ना और मुन्नी दोनों पांचवी में पड़ गए थे तब से ही रत्ना ने शोर मचाना शुरू कर दिया था कि इनका किसी विद्यालय में नाम लिखवा दो सारे दिन घर में बैठे रहते हैं ।
ठीक है कहकर सुजान रोज बात को टाल देता था ।
पर आज रत्ना नाराज हो गई कि आप मेरी बात नहीं मानते हो पूरे दिन आवारागर्दी करते हैं यह बच्चों के साथ में रत्ना की बात सुनकर जेठानी मुंह चढ़ा कर कहा हां पढ़ा लिखा लो देवर पढ़े-लिखे लोगों के बच्चे तो पढ़े-लिखे ही होंगे हम तो गवार हैं ।
तो रत्ना कहती ऐसी बात नहीं है जी जी आप ही पढ़ाइए अपने बच्चों को और जो हमसे होगा हम भी आपका सहयोग कर देंगे ।
तभी सभी मुंह बना कर कह देती है ना हमें नहीं पढ़ाना बहुतेरा है भगवान का दिया घर में खोदेंगे और खाएंगे क्या जरूरत है किसी की चाकरी करने की सुजान को ही देख लो सुबह से शाम तक कैसे भागता रहता है ।
रत्ना कुछ ना कहती है चुप हो जाती एक दिन सुबह- सुबह सुजान ने गांव के ही विद्यालय में मुन्ना का एडमिशन करा दिया और घर आकर मां को मिठाई का डिब्बा देकर बोला माँ यह मिठाई सबको बांट दो अरे सुबह-सुबह किस बात की मिठाई बांट रहे हो देवर जी ???
सुजान सिंह ने कहा मैंने मुन्ना का एडमिशन गांव के विद्यालय में करा दिया है पहली बार वह विद्यालय जाएगा इसीलिए मिठाई लेकर आया हूं लो भाभी आप भी मुंह मीठा करो सुजान की भाभी मुंह बना कर चली गई हां पढ़े लिखे लोगों के बच्चे तो पढ़े-लिखे ही होंगे सुजान को थोड़ा बुरा तो लगा पर मैं मुस्कुरा कर बात को टाल गया।
तभी माँ सबको मिठाई दी।
रत्ना को भी दी सुजान ने देखा रत्ना के मुंह पर वो खुशी ना थी जो होनी चाहिए जब रत्ना थोड़ी अकेली हुई तब सुजान ने उससे कहा तू इतनी परेशान क्यों है तू भी तो कब से शोर मचा रही थी कि एडमिशन कराओ एडमिशन कराओ बच्चे आवारागर्दी करते हैं तू अब जब मैंने उसका नाम लिखवा दिया तो क्यों मुंह फुलाए बैठी है और तूने मिठाई भी ना खाई बता क्या बात है ????
रत्ना ने उससे कहा आपको नहीं पता क्या बात है मैं क्यों गुस्सा हूं क्या मेरा गुस्सा होना जायज नहीं है ।
सुजान सिंह ने कहा नहीं मुझे समझ नहीं आ रहा तू बताएगी तब पता चलेगा ना मैं कोई अंतर्यामी नहीं हूं जो तेरे मन की बात जान लूँ।
तब रत्ना ने कहा केवल मुन्ना का ही एडमिशन क्यों कराया मुन्नी भी तो थी ना उसका भी तो कराना था ना ???
सुनकर सुजान सिंह चीख पड़ा रखना आज के बाद यह बात कभी दोबारा मत कहना !इस गांव में कभी किसी लड़की ने किताब को नहीं उठाया।
और ऐसा क्या हुआ जो किसी ने किताब को नहीं उठाया आप तो पढ़े लिखे हैं! शिक्षक होकर ऐसी बातें करना शोभा देता है आपको यह तो वही बात हो गई 'दीपक के तले अंधेरा '
सुजान सिंह ने कहा मुझसे बहस मत कर मैंने कह दिया जब मुन्नी नहीं पड़ेगी तो नहीं पड़ेगी मैं इस गांव की परम्परा से विपरीत जाकर कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहता।
तो रत्ना ने भी गुस्से में अपना फैसला सुना दिया मुन्ना के बापू जब तक आप मुन्नी का भी एडमिशन नहीं करा देते मैं खाने को हाथ भी ना लगाऊंगी या फिर मुन्ना को भी पढ़ने ना भेजूंगी।
सुजान सिंह बहुत परेशान हो गया करे तो क्या करें फिर उसने रत्ना के पास जाकर कहा कि मेरी बात सुन इसके पीछे एक बहुत बड़ा राज है!
रत्ना ने कहा ठीक है मुझे समझाओ बताओ???
अगर तू सुन लेगी तो तू भी मेरी बात से सहमत हो जाएगी।
ठीक है मुझे बताओ अगर अब आपकी बात सही हुई तो मैं आपसे कभी भी नहीं कहूंगी मुन्नी को विद्यालय भेजने के लिए।
रतन सिंह ने कहा ठीक है अभी मैं विद्यालय जा रहा हूं रात को बताऊंगा ।
रत्ना ने कहा ठीक है और सुन तू खाना खा लेना बेकार की जिद मत डाल कर बैठा कर ।
हां हां ठीक है खा लूंगी कहकर रत्ना ने सुजान सिंह को विद्यालय के लिए विदा किया और स्वयं पूरे दिन ही उन्होंने रही आखिर कौन सी बात है कौन सा राज है जो इस गांव की कोई भी बच्ची कभी भी विद्यालय नहीं गई किससे पूछूं पर उसने शांति से और सब्र से रहना ही उचित समझा 4 लोग सुनेंगे तो बात का बतंगड़ बनाएंगे यही सोचकर उसने शाम का इंतजार करना ही उचित समझा।
शाम को खाना पीना होगा और बड़ी बेसब्री से रत्ना को सुजान का इंतजार था जब सुजान सिंह सभी काम निपटा कर कमरे में आया तो उसने उसे दूध का गिलास पकड़ाते हुए कहा आपका सारा काम हो गया ???
हां सारा काम हो गया मेरा तूने कुछ खाया,????
हां मैंने खाना खा लिया।
लिया सुजान सिंह को पता था कि रखना बहुत ही ज्यादा जिद्दी है उसने अपने दूध का गिलास उसकी तरफ बढ़ा दिया चल खाना मत खा दूध पी ले फिर मेरी बात सुन ले उसके बाद मैं खिलाता तुझे खाना ।
ठीक है पहले आप यह बताओ कि क्यों शापित है यहां की लड़कियों का विद्यालय जाना ???
हां बताता हूं इस गांव के जमीदार की पत्नी सुमित्रा देवी, बहुत अच्छे जैसलमेर के पढ़े-लिखे परिवार से थी और गांव के विद्यालय का निर्माण भी उन्होंने कराया था जब उनके बेटी पैदा हुई तो उन्होंने उसका दाखिला इस विद्यालय में कराया और पहले ही दिन जब है हाथ में किताब लेकर पढ़ने बैठी तो अचानक से वह वहीं गश खाकर गिर पड़ी और फिर कभी ना उठी तब से आज तक जो भी लड़कियां विद्यालय में पढ़ने जाती जीवित न रहती हैं।
पहले तो किसी ने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया पर लगातार जब भी कोई बच्ची उस विद्यालय में जाती तो वह जीवित वापस ना आती किताबों को हाथ लगाते ही वह गश खाकर गिर जाती क्या तुम यह चाहती हो हमारी मुन्नी भी कभी उस विद्यालय से वापस ना आए इस गांव की लड़कियों के लिए किताबों को पढ़ना हाथ लगाना एक अभिशाप है।
उसकी बात सुनकर रत्ना हैरत में पड़ गई पर उसे इस बात का विश्वास नहीं हुआ की विद्या की देवी मां सरस्वती बच्चों के साथ इस तरह भेदभाव कैसे कर सकती हैं गांव के सारे लड़के पढ़ते लिखते पर यह क्या लड़कियां जैसे ही विद्यालय जाते पहले ही दिन जीवित ना रहते हैं कहीं कोई बात तो थी उसके मन में कई तरह के विचार आ रहे थे तभी सुजान सिंह खाना लेकर आया ले अब तू खाना खा ले;
रत्ना कहा हां ठीक है मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं अपने बच्चे की जान की कुर्बानी देकर मैं उसे पढ़ाना नहीं चाहती यह कहकर उसने खाना खाया और सुजान सिंह आराम से सो गया परंतु रत्ना की आंखों में नींद ना थी आखिर क्या सच में ऐसा है क्या सच में किताबें शापित है क्या ऐसा है इन्हीं विचारधाराओं में खोई हुई पता नहीं कब उसकी आंख लग गई तभी नींद में वह उठकर घर के पश्चिमी दिशा में टूटे पुराने खण्डहर के पास गई ;
वहाँ बहुत ही बुजुर्ग महिला दर्द से कराह रही थी उसे देखकर मुस्कुराई और प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराया और बहुत सी बातें बताई और बोली जा खोल दे शापित किताब का रहस्य !
उसने सुबह सुजान को बताया सुजान हँस दिया पूरे दिन सोचती रही वही सपना देख लिया शायद।
रत्ना के मन मे प्रश्न उठते पर किससे उनका जवाब मांगे कुछ समझ में नहीं आता ।
और हर रात वो उस खण्डहर में उस स्त्री के पास पहुंच जा ती और वह स्त्री वही बात दोहराती शायद सपना ही है यह सोचकर चुप हो जाती।
1 दिन मुन्ना को खाना देने वह विद्यालय की तरफ गई साथ में मुन्नी भी साथ थीऔर मुन्नी- मुन्ना की किताब लेकर वही पलटने लगी।
रत्ना ने ध्यान नहीं दिया वह विद्यालय के ही काम करने वाले एक कर्मचारी से बात करने में लग गई मुन्नी बहुत देर तक किताब को हाथ में लिए रही रत्ना ने जब यह देखा तो उसको घबराहट होने लगी भागकर उसने मुन्नी के हाथ से किताब को हटा दिया और विद्यालय में जितने लोग यह सब देख रहे थे वह दंग रह गए क्योंकि मुन्नी को उस किताब को हाथ में लेने से कुछ नहीं हुआ वह हंसती खेलती वापस आ गई ।
घर सारे गांव में यह चर्चा का विषय बन गया कि गांव से अभिशाप दूर हो गया है पर गांव के कुछ लोग इसी बात से सहमत नहीं थे।
कह रहे थे कि मुन्नी ने कोई दाखिला थोड़ी करवाया था जो वह श्राप मुन्नी की जान लेता है तो अपने भाई की किताब पढ़ रही थी उसकी किताब थोड़े ही थी।
इस बात से रत्ना को गुस्सा आ गया और दूसरे ही दिन है मास्टर जी से मिली मुझे अपनी बेटी का दाखिला करवाना है इस विद्यालय में ,;
मास्टर जी ने कहा बहुरानी क्या पागल हो अपनी बेटी की जान के पीछे पड़ी हो तुम्हें नहीं पता यह किताबें कितनी शापित है जो भी लड़की को छूती है वह उन्हें निगल जाती है उनकी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं।
मास्टर जी आप भी पढ़े लिखे हो कर बेकार की बातें कर रहे और क्या आप नहीं चाहते शिक्षा का उजाला बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी मिले???
मास्टर जी ने कहा अब मेरे चाहने से क्या होता है बहु रानी ।
रत्ना ने उनकी तरफ देखा मतलब कहना क्या चाहते हो आप मास्टर जी।
सकपका गए और बात अधूरी छोड़ कर बोले कि जब सरस्वती माँ ही नहीं चाहती तो हमारे चाहने से क्या होता है ।
रत्ना ने कहा ऐसा नहीं है सरस्वती मां तो मां है मां कभी भी अपने बच्चों के साथ भेदभाव नहीं करती मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कल ही मैं अपनी बेटी का दाखिला यहां करवाऊंगी कहकर रत्ना चली गई सारे गांव में हड़कंप मच गया कि कैसी मां है औरतों उसे कोसने लगीं।
पुरुष सुजान सिंह से कहने लगे सुजान सिंह सिर पकड़ कर बैठ गया रत्ना ने जिद कर ली थी कि वह मुन्नी का एडमिशन करवा कर ही मानेगी जहां इतनी लड़कियां नहीं रहे एक और सही सुजान सिंह चीखा तू पागल हो गई है जानबूझकर अपनी बच्ची को मौत के मुंह में धकेल रही है।
उसमें सुजान सिंह से कहा आप क्यों नहीं समझते हो सकता है हमारी बच्ची से ही उद्धार होना लिखा हुआ फिर उसने मुन्ना की किताब को हाथ में पकड़ा तो उसे कुछ क्यों नहीं हुआ अब बात थोड़ी थोड़ी सुजान सिंह के भी समझ में आ गई तभी रत्ना ने उसे कुछ बहुत धीमे से बताया सुनकर सुजानसिंह दंग रह गया !
बोला ठीक है पर अगर मुन्नी को कुछ हो गया तो मैं उम्र भर तुझे माफ नहीं करूंगा ।
रतना ने कहा ठीक है मत करना मुझे माफ आज वो वादा पूरा करो जो आपने मुझसे किया था आज वह वादा पूरा करो मुन्नी का एडमिशन करा दो मर्द होना अपनी जुबान से नहीं हतो अब।
ठीक है और सुबह उठते ही रतना बहुत खुश थी नहला कर भगवान के मंदिर में वह विशाखा को लेकर गई और एक छोटा सा कुमकुम का टीका उसके मस्तक पर लगाया मां सरस्वती के चरणों में उसके सिर को झुकाया और ले चली विद्यालय की तरफ अकेली रत्ना और विशाखा और सुजान सिंह ही नहीं पूरा गांव था उनके साथ सभी देखना चाहते थे कि आज क्या होने वाला है हर तरफ एक खलबली मची हुई थी खबर गांव में और आसपास से जुड़े गांव में आग की तरह फैल गई लोग इकट्ठे हो गए आज सालों के बाद सुजान सिंह की बेटी विद्यालय में पढ़ने जा रही है और वह शापित किताबों को छूएगी तो निश्चित ही उसकी मौत हो जाएगी कैसी मां है सभी रत्ना को कोस रहे थे और सुजान सिंह को भी कह रहे थे कैसा जोरू का गुलाम है पत्नी की बात मानकर बच्ची को मौत के मुंह में धकेल रहा है ।
पर भगवान पर पूरी आस्था और विश्वास के साथ पहुंच गए विद्यालय।
मास्टर जी ने मुन्नी का नाम रजिस्टर में लिखा और मुन्नी को पाठशाला में बिठाया गया सुजान सिंह ने मिठाई का वितरण करवाया सब लोग देख रहे थे छोटी सी खिलखिलाती हुई मुन्नी हाथ में मिठाई लिए हुए बहुत खुश थी; तभी गांव के मुखिया ने कहा जब सुजान सिंह ने यह फैसला लिया है तो मुन्नी को पढ़ने के लिए किताबें पुरस्कार रूप से हम अपनी तरफ से देते हैं और उन्हें मुन्नी की तरह किताबों को बढ़ाया तभी रत्ना ने किताबों के हाथ में ही ले लिया अभी छोटी है संभालना सकेगी ठीक है एक किताब दे दो।
कहीं कुछ खटक गया रत्ना को उसने वह किताबें मुन्नी को नहीं दी और अपने साथ ही थोड़ी देर विद्यालय में उसे बिठा कर ले आई सभी लोग दंग थे कि मुन्नी को कुछ नहीं हुआ था वह जीवित थी हंसती खिलखिलाती चली आ रही थी ।
तभी मुखिया ने तर्क दिया अभी कौन सी उसने किताबें छुई है कल जब किताबें छूएगी तो निश्चित ही वही होगा जो सालों से पहले इस गांव में होता आया है सुजान सिंह अब भी मान जाओ पर अब सुजान सिंह की भी बात समझ में आ गई थी अगले दिन रत्ना ने मुन्नी को विद्यालय नहीं भेजा 4 दिन के बाद मुन्नी विद्यालय गई अपने छोटे छोटे हाथों में किताबों को लिए हुए वह किताबें खोल खोल कर उलट पलट रही थी क्योंकि वह भी सही से पढ़ना समझना नहीं जानती थी गांव के सभी लोग आश्चर्यचकित थे हाथ में किताबें लिए नन्ही सी मां शारदे के समान दिख रही थी मुन्नी सभी कह रहे थे आज इस गांव को अभिशाप से मुक्ति मिल गई ।
मुखिया भी दंग था ।
तभी वहां पर पुलिस आ गई और सब में हड़बड़ी मच गई क्यों किया यह पुलिस क्यों आई है विद्यालय में सुजान सिंह बोला अभी बताता हूं मुखिया जी को गिरफ्तार कर लीजिए इस्पेक्टर साहब।
मुखिया बोला तुम पागल हो गए हो ऐसी बात कर रहे हो पहले मेरा कसूर क्या है यह तो बताओ ।
पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा वह भी बताता हूं और यह भी बताता हूं कि आज तक क्यों इस गांव में कोई भी लड़की किताबों को छूकर क्यों 1 घंटे भी जीवित न रह पाई मुखिया तुम बताओगे या मैं ही बता दूं चलो मैं ही बता देता हूं कहकर सुजान सिंह ने बताया जो भी कन्या पढ़नी आती थी और किताबें स्वयं मुखिया उन्हें देते थे उनमें जहर लगा हुआ होता था जब भी बच्चा उन पन्नों को पलट कर पढ़ता था तो इतना असर था जहर का की हाथ मुंह पर आंखों पर लग जाने से उस बच्चे की मौत हो जाती थी और यह काम इन के सभी पूर्वज करते आए हैं यह कभी नहीं चाहते थे कि स्त्री सशक्त हो पढ़े-लिखे और इनके अत्याचार से उसे मुक्ति मिले।
अपने हिसाब से ही चलाना चाहते हैं सब कुछ और इनकी ,दादी' बड़ी जमीदारनी जिन्होंने यह विद्यालय बनवाया उन्हें जब यह पता चल गया तो उनको भी जहर देकर मार दिया था इनके दादा ने क्यों मुखिया जी सही कहा ना सभी गांव वाले दंग रह गए मुखिया चुपचाप खड़ा था।
तभी गांव वालों ने कहा तुम्हारे पास क्या सबूत है सुजान सिंह ने कहा हमारे पास सबूत है उसी रात इनकी दादी की आत्मा हमारी पत्नी को अपने साथ बुलाकर उस खण्डहर में ले गयी और सब बताया और वो ताबूत भी दिखाया जो उस खण्डहर के तहखाने में बंद है।
पर मुझे मालूम है आप इस बात पर भरोसा न करेंगे न ही कानून तो किताबें मैंने उसी दिन शाम को शहर के लैव में जमा कर दी जब किताबें चेक कराएं तो पता चला कि का अफीम का जहर लगा हुआ था जो कोई भी तीन-चार साल का बच्चा नहीं बर्दाश्त कर पाता था।
सब गांव वाले सुनकर दंग रह गए और मुखिया भी अपने इस गुनाह को सबके सामने स्वीकार कर लिया तभी सुजान सिंह ने कहा कि कभी भी कोई किताब सापित नहीं होती कभी भी कोई माता-पिता को अपने बच्चों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए पर मजबूरी थी जीवन के आगे कोई भी शिक्षा को चुनने को तैयार नहीं था ।
आज रत्ना ने मेरी आंखें खोल दी और मुझे भी समझ आ गया कि किताबें कभी भी शापित नहीं होती हैं वह तो जीवन को हर श्राप से मुक्ति दे देती हैं हर पथ की सहयोगी और जीवन दायनी हैं।
madhura
24-Aug-2023 05:26 AM
very nice
Reply
Shalini Sharma
05-Oct-2021 03:13 PM
Nice
Reply
Fiza Tanvi
04-Oct-2021 03:38 PM
Good
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